Tuesday 11 October 2011

N.Prabhakaran's kavita Ajneyam अज्ञेयम

   अज्ञेयम

N.Prabhakaran's kavita Ajneyam अज्ञेयम

बादल पानी पीने को उतरनेवाले  
पहाड़ के शिखर के तालाब के किनारे  एक पूरा दिन 
मैं सोता रहा था  .
जागने  पर
जंगली पेड़ के नीचे 
काल से अनभिझ पत्थर की मूर्ती के कंधे पर
एक गौरये  को देखा.
पानी पीने को आये बादल 
लौट जाते वक्त 
उनके साथ लौटने को  भूल गया वह.
मेरे साथ तलहटी में आया वह बिचारा
उसी दिन बाज़ार की गर्मी में 
अंदर  की गरमाई में मर गया. 
जहां उसका नन्हा  सा शरीर दफनाया गया 
वहां अब एक नाम रहित  
जंगली पौधा उग आया हैं.
उसी की छाया में बैठ कर
मै पता नहीं क्यों
यह पंक्तियां लिखता हूँ.
 
 अनुवाद. प्रोफ. सन्नी एन.एम
 मलाबार क्रिस्टियन कॉलेज
calicut 
 

  

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