Friday 21 October 2011
Thursday 13 October 2011
Veerankutty's Poem, " सब कुछ मुझे ही कहने की जरूरत नही हैं".
Veerankutty, a prominent environmental poet of the new generation in Malayalam, has authored three volumes of poetry and two collections of stories for children. His poetry has won him the KSK Thalikkulam Award. He teaches Malayalam at the Government College, Maddappally, in the Kozhikode district of Kerala.
तस्वीरों की एक परंपरा ही लिखेंगी
इस गली की छायाएं
मरे हुए आदमी को
दूसरों से बढकर
ख़ामोशी के बारे में कहने का हक़ है,
खुदा के बारे में भी.
कहने का मतलब यह है कि
इतने समय तक शोर -मचाने वालों से
"चोप ", कहने केलिए
एक हिम्मतवर को आगे आना है.
वह आप में से कोई हो तो ज्यादा सही.
Bibliography
Jalabhoopadam (Mapping the Waters), Papillon, Kozhikode, 1999.
Manthrikan (Wizard), DC Books, Kottayam, 2004.
Autograph, DC Books, Kottayam, 2007.
Jalabhoopadam (Mapping the Waters), Papillon, Kozhikode, 1999.
Manthrikan (Wizard), DC Books, Kottayam, 2004.
Autograph, DC Books, Kottayam, 2007.
वीरानकुटी की कविता-
" सब कुछ मुझे ही कहने की जरूरत नही हैं".
ऐसा हठ मत करना कि
सब कुछ मैं ही कहुं
अकेलापन के बारे में कहने
जनम से
एक ही जगह खड़ा होने वाला
पहाड़ ही काफी है.
पहाड़ ही काफी है.
जंगल को
किलकारियों के साथ चित्रित करने को
उसकी झरना ही काफी है.
सपना बुनने के बारे में
इस मकड़ी से ज्यादा
मैं कुछ नहीं जानता.
मैं कुछ नहीं जानता.
भूख के बारे में हो तो,
दुबली आकृतियों सेतस्वीरों की एक परंपरा ही लिखेंगी
इस गली की छायाएं
मरे हुए आदमी को
दूसरों से बढकर
ख़ामोशी के बारे में कहने का हक़ है,
खुदा के बारे में भी.
कहने का मतलब यह है कि
इतने समय तक शोर -मचाने वालों से
"चोप ", कहने केलिए
एक हिम्मतवर को आगे आना है.
वह आप में से कोई हो तो ज्यादा सही.
Tr . by. sunny n.m
Asso.prof. Hindi. MCC. Calicut.
D. Vinayachandran's kavita "image" इमेज
D. Vinayachandran is a well-known Indian Malayalam poet. He is one of the proponents of modern style of prose in Malayalam poetry. He worked as a Malayalam professor in various colleges for more than thirty years. Now he is retired and spends most of his time for literary works.
D. Vinayachandran's kavita "image"
इमेज
D.Vinayachandran. |
Awards
Asan Smaraka Kavitha Puraskaram (Prize for Poetry) 2006.
Kerala Sahithya Academy award (1992) - for his work titled 'Narakam Oru Premakathayezhuthunnu' (A love story titled hell).
Published works
Edasseriyude Thiranjedutha Kavithakal 1996
(This is a selection of poems written by Edasseri, hand picked by Vinayachandran).
(This is a selection of poems written by Edasseri, hand picked by Vinayachandran).
Narakam Oru Premakatha (A Love story titled hell).
इमेज
मेरी अलगनी में वह लहँगा
कहाँ से आया होगा ?
पड़ोसी घरों की बुजुर्ग माताएं
और रास्ते में मिलनेवाली लड़कियाँ तो
मेरी ओर देखती तक नहीं.
अनजाने में भी कविता के बारे में सोचने वाला
कालोनी में कोई नहीं हैं.दो शब्दों के बीच
दर्द के ठीक सही इमेज.
पॉल सलान इकठा करते जैसे
गससात की कहानी पढ़ी.
वह लहंगा
वहाँ पडा हुआ है.
वह लहंगा
वहाँ पडा हुआ है.
मानो गदगद करने वाली अलगनी मैं ही हूँ
शरीर और मन के सिवा
मात्र लहंगा सपना देखेगा ?
आलसी से कवि के बिन सिलाये शब्द
लहँगा जैसा प्रतिरोध बन जाएंगे?
इस लहँगा के लिए सही
शख्स और मन कैसे ढूँढ निकालेगा ?
पड़ोस के वनिता सदन की ओर
उसे उडवाने केलिए
बोब मारले के गीत
एयमे सेसैर की कविता
एयमे सेसैर की कविता
या मेस्सी के पैर असमर्त हैं
वह वहीं पड़ी रहने दो
मेरे शब्द संपदा में
प्यार और मृत्यु टकराहट
की वेला में मुझे उसका
एलान समझ में आयेगा.
पड़ोस में
किसी की मृत्यु हुई.
लगती है, शादी तय हुई वधु है.
मैं भीतरी सागर के किनारे के
चट्टान के सिरहाने की ओर
एक सूनी जगह की ओर
जाता हूँ .
Tr. by Asso. प्रोफ. सन्नी. एन. एम .
हिंदी विभाग,
मलाबार क्रिस्तियन कॉलेज कलीकट .
मलाबार क्रिस्तियन कॉलेज कलीकट .
madhyamam weekly 2011 october 10
Tuesday 11 October 2011
N.Prabhakaran's kavita Ajneyam अज्ञेयम
अज्ञेयम
N.Prabhakaran's kavita Ajneyam अज्ञेयम
बादल पानी पीने को उतरनेवाले
N.Prabhakaran's kavita Ajneyam अज्ञेयम
बादल पानी पीने को उतरनेवाले
पहाड़ के शिखर के तालाब के किनारे एक पूरा दिन
मैं सोता रहा था .
जागने पर
जंगली पेड़ के नीचे
काल से अनभिझ पत्थर की मूर्ती के कंधे पर
एक गौरये को देखा.
पानी पीने को आये बादल
लौट जाते वक्त
उनके साथ लौटने को भूल गया वह.
मेरे साथ तलहटी में आया वह बिचारा
उसी दिन बाज़ार की गर्मी में
अंदर की गरमाई में मर गया.
जहां उसका नन्हा सा शरीर दफनाया गया
वहां अब एक नाम रहित
जंगली पौधा उग आया हैं.
उसी की छाया में बैठ कर
मै पता नहीं क्यों
यह पंक्तियां लिखता हूँ.
अनुवाद. प्रोफ. सन्नी एन.एम
मलाबार क्रिस्टियन कॉलेज
calicut
अनुवाद. प्रोफ. सन्नी एन.एम
मलाबार क्रिस्टियन कॉलेज
calicut
Thursday 6 October 2011
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