Prof.V.G.Thampy: Poet,Film director & Editor. He has published two collections of poems, viz. Thachanariyatha maram and Hawa mulappal kudikkunnu. Editor of Rasana, Kanal,Padhabhedham literary journals. He got many awards like malbarry award, malayala manorama best poetry award and lipi award. Address, jethavanam, west palace road, Thrissur-20. phone 09020769923.
सफेद लहँगा पहनी हुई रात
वी.जी .तम्बी
अनुवाद. डॉ. सन्नी एन.एम.
(और श्वेद वस्त्र ले ले कि पहिनकर तुझे अपने नंगेप्पन की
लज्जा न हो -बाइबिल- प्रकाशित वाक्य-3 -18 )
मीठी नारंगी के रंग में
पश्चिमी हवा को उतारो .
पीले के बालों की डोरी को सहलाकर
पीले के बालों की डोरी को सहलाकर
बुलबुल के कंठ में बैठकर
रात के गीत को उतारो.
दिन
पूर्वी पहाडों से उतरकर आने से पहले होना चाहिए
वरना,
सीमायें आएँगी, नाम भी आएगा
रंगीन पोशाक आयेगा
जलदी से हो जाये .
नक्षत्रों के बुझने का इंतजार न करके
नक्षत्रों के बुझने का इंतजार न करके
एक ही काली लकीर से
परछाई की नृत्तशाला उतारो.
अनार के रंग से
रात की गंध उतारो .
कोख की वही गंध.
मानव-संभोग की
साँसों की मादक गंध
खेतों के फूलों के पराग की गंध
गेहुओं का धान उगने की गंध
जो सिर्फ रात की अपनी हैं
अंधा दिन
अँधेरे को निचुड़कर, नक्षत्रों को कुरेद फेंककर
आसमान को तहस-नहस कर
सपनों पर हमला करने से पहले
रात की पलकों के चारों ओर
नींबुओं को उतारो .
नींद के साथ आनेवाली परछाइओं को
कैनवास में उतारो.
देखो,
रात की थाली से
सारे चराचर साँस लेते हैं
रात से भी अँधेरी काली साँस को
धरती सिर्फ एक ही चुंबन से
सब कुछ सींचती हैं
रात के दिल की राज़ में
मनुष्य पुत्र का जनम तथा उत्थान
प्यारी चितेरी,
रात के बन्धनों को खोलो
ज्ञान की मशालें जलती हैं .
रात की नीली आँखों में
सागर जैसी झुर्रियां
जंगल जैसी छायाएं .
हवा जैसी साँसें
रात को उतारना हैं तो
पेड़ विहीन जंगल में
अलग रहना पड़ेगा
हृदय की धड़कन रोकनी पड़ेगी
खुदा के साथ नग्न होकर सोना पड़ेगी .
हे, अन्धेरें में उबलता उन्माद
नशेदार दाखरस से होंठ गीलाकर
कैनवास का खून चूम लो.
तब सुनोगी तुम एक विनती
खुदा का एक मौन रुदन.
खुदा का एक मौन रुदन.
रात की चितेरी
धरती तक पुरानी उस रात को उतारो.
देख, उसके पहले
बही एक तीखी हवा
लजा कर अंजीर का पत्ता उड़ गया
मेरी नग्नता जोर से चीख उठी
पीछे-पीछे आई भूख,आई रुलाई.
पहले और दूसरे भय के बीच
दिन ने एक हल जोता.
क्षितिज को कंधे पर थामकर
एक टूटा सूरज
नमक की चाबी ढूंढकर
सागर के खँडहर से
रवाना हो गया.
कैनवास में तब
सफेद लहँगा पहना हुवा काला हंस
एक रूपहीन अंडपीत की ओर
पर्दा फाड़कर उड़ गया .
Tr.by. Dr . sunny .n.m.
एस्सो. प्रोफेस्सर. हिंदी.
Malabar christian college calicut , kerala .673001 .
Dear Sunny,
ReplyDeleteअनुवाद केलिए आपने बढ़िया कविता चुनी है। लेकिन काव्यानुवाद में मैं नौलिखिया हूं, इसलिए अनुवाद पर टिप्पणी देने में असमर्थ हूं।
शुभकामनाओं के साथ
डॉ.पी.के.राधामणि
यह समकायह समकालीन लेखन से अलग खड़ा है. यह भी एक बहादुर कविता है.
ReplyDeletethank u pavam njan...
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